दिनाँक: १५ अगस्त २०२५
प्रश्न: मांसाहार का कारण 'संस्कृति'? आइए इस उत्तर की गहराई को समझें।
उत्तर: यह तर्क कि संस्कृति हमें मांसाहारी बनाती है, स्वयं संस्कृति के सबसे बड़े सत्य की उपेक्षा करता है: कि विरासत भोजन में नहीं, विवेक के विकास में है। हमारे पूर्वजों का मांसाहार छोड़ना किसी गूढ़ आध्यात्मिकता का परिणाम नहीं, बल्कि एक सरल तार्किक निष्कर्ष था—एक ऐसी यात्रा जिसके लिए केवल निष्कपट जिज्ञासा की आवश्यकता है।
जिस क्षण कोई व्यक्ति केवल प्रथा का अनुसरण छोड़कर स्वयं से पूछता है, "मैं यह क्यों खा रहा हूँ?", वह उसी वैचारिक क्रान्ति को पुनः आरम्भ करता है। संस्कृति के नाम पर उसके नैतिक विकास को नकार देना ही वास्तविक पाखण्ड है। प्रश्न यह नहीं कि हमारे पूर्वज क्या खाते थे; प्रश्न यह है कि क्या हम उस विवेक को आत्मसात करने का साहस रखते हैं जिसे उन्होंने अर्जित किया था।
सरल भाषा में: वास्तविक पाखण्ड, संस्कृति के नाम पर पूर्वजों की प्रथा का तो अनुसरण करना, पर "क्या यह आवश्यक है?" जैसे सरल प्रश्नों से उपजे उनके विवेक को नकार देना है।
-- लव ग्रोवर